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माँ कल्याणी भगवती (ललिता) - पीठराज प्रयाग का प्राचीनतम शक्ति और सिद्धिपीठ

या श्री: स्वयं सुकृतियाँ भवनेष्व लक्ष्मी: || यापात्मनां कृतधिया हृदययेषु बुद्धि:
श्रद्धा सतां कुल जन प्रभवस्य लज्जा || तां त्वां नता स्म परिपालय देविविश्वम:

जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मी रूप में, पापियों के घरों मे दरिद्रता के रूप में,
शुद्ध अन्त:करण वालों के हृदय में बुद्धि रूप में, तथा कुलीनों में लज्जा रूप में निवास करती है।
उन भगवती कल्याणी को हम नमन करते हैं। हे देवी समस्त विश्व का परिपालन कीजिए।


विशिष्ट भारत की गौरवमयी आध्यात्मिक परम्परा में ‘शक्ति उपासना’ का अपना स्थान रहा है। यहाँ अनगिनत ऋषि, मुनि, साधु, सन्त, गृहस्थ और सन्यासी से लेकर अवतार के रूप में अवतरित होने वाली महान दैवी विभूतियों तक ने शक्ति पासना का श्रेष्ठ आदर्श प्रस्तुत कर शक्ति उपासना की महती महत्त की परिपुष्टि की है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम की शक्ति पूजा, महाभारत में गीता का अमृत उपदेश देने वाली लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण को शक्ति-साधना करके अनुपम उदाहरण हैं। Read More

स्व॰ पं॰ केदार नाथ पाठक का अनूठा व्यक्तित्व

महाशक्तिपीठ माँ कल्याणी देवी जी का मन्दिर प्रयाग का अतिप्राचीन एवं पुराण वर्णित शक्तिपीठ है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार त्रेता युग में माँ के इस पीठ में ३२ अंगुल ऊँची प्रतिमा की स्थापना महर्षि याज्ञवल्क्य ने की एवं माँ की आराधना की थी उस काल से माँ कल्याणी का पूजन अर्चन चल रहा है। वर्तमान में जो माँ की प्रतिमा हैं वह भी उसी प्रमाण के अनुसार ३२ अंगुल ऊँची है। इलाहाबाद पुरातत्व विभाग के क्यूरेटर डा॰ सतीशचन्द्र काला ने मूर्ति में शोध करके यह बताया कि माँ की प्रतिमा १५०० वर्ष पुरानी है। माँ का स्थान पहले यमुना जी के किनारे एक मढ़िया में नीम के पेड़ के नीचे था, लगभग २५० वर्ष पूर्व स्वामी ‘‘दीनदयाल जी’’ जिनका उपनाम दूधाधारी बाबा था। (क्योंकि ये स्वामी जी दूध पीकर ही रहते थे), उन्हें ज्ञात हुआ कि ये माँ का शक्तिपीठ है तब से वह यहाँ पर कुटी बनाकर रहने लगे एवं माँ का पूजन अर्चन करते थे उनके उपरान्त उनके दौहित्र (नाती) पं॰ दुर्गा प्रसाद मिश्र ने...... Read More

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स्व॰ पं॰ सीताराम पाठक का अनूठा व्यक्तित्व

सन् १९७३ से १९७७ तक इस वृहद धार्मिक कार्य को पं॰ सीताराम पाठक प्रयाग के गणमान्य व्यक्तियों के सहयोग से बड़ी निष्ठा के साथ किया। सन् १९७८ से २००२ तक पं॰ सीताराम पाठक के छोटे भाई पं॰ राम जी पाठक ने इस कार्य को बड़ी निष्ठा के साथ निभाया। इसके पश्चात पं॰ सीताराम राम पाठक के ज्येष्ठ पुत्र पं॰ सुशील कुमार पाठक अपने परिवार एवं प्रयाग के गणमान्य व्यक्तियों के सहयोग से मंदिर से संबंधित सभी दायित्यों का बड़ी निष्ठा एवं लगन के साथ कर रहे हैं।
पं॰ केदारनाथ पाठक के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र पं॰ सीताराम पाठक एवं उनके छोटे भाई पं॰ राम जी पाठक ने भक्तों के सहयोग से सम्पूर्ण मंदिर में संगमरमर लगवाने का कार्य कराया ... Read More

स्व॰ पं॰ राम जी पाठक का अनूठा व्यक्तित्व

पं॰ राम जी पाठक का जन्म सितम्बर सन् १९४० ई॰ (भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया) को इलाहाबाद जिले के कल्याणी देवी मुहल्ले में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पं॰ केदार नाथ पाठक एवं इनके अग्रज भ्राता पं॰ सीताराम पाठक थे। पं॰ केदार गुरु ने अपने यहाँ अखाड़े का निर्माण कराया जो ‘‘केदार गुरु अखाड़ा’’ नाम से जाना जाने लगा। हिन्दुस्तान के चोटी के पहलवान खड़ग सिंह इन्हीं के अखाड़े में रहकर अभ्यास किया करते थे। श्वि विजीय गामा पहलवान ने अपने चालिस पट्ठों के साथ शहर के प्रतिष्ठित रईस स्व॰ चौधरी विश्वनाथ सिंह के आर्थिक सहयोग व केदार गुरु के सानिध्य में रहकर लगभग २ महीने तक कुश्ती का अभ्यास इन्हीं के अखाड़े में किया। Read More

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Album Title: शक्तिपीठ माँ कल्याणी देवी मंदिर में शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन पांचवें स्वरूप यानी स्कंदमाता की आरती
Event Date : 03/10/2019
Created Date : 04/10/2019
Description: आज नवरात्रि का पांचवा दिन है | आज के दिन देवी दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की उपासना की जायेगी । इनकी उपासना से घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार देवताओं के सेनापति कहे जाने वाले स्कन्द कुमार, यानि कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। स्कंदमाता अपने भक्तों पर उसी प्रकार अपनी कृपा बनाये रखती हैं, जैसे कोई माता अपने बच्चों पर बनाये रखती हैं। अतः देवी मां की कृपा बनाये रखने के लिये और घर-परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिये आज के दिन उनकी पूजा जरूर करनी चाहिए । स्कंदमाता को कार्तिकेय की माता माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि संतान की प्राप्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए स्कंदमाता की आराधना करनी चाहिए। आज नवरात्रि के पांचवें दिन नवदुर्गा के पांचवें स्वरूप यानी स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाएगी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, स्कंदमाता भक्तों के लिए स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करती हैं. माता भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. मां का स्वरुप बेहद अद्भुत और ममतामयी है. स्कंदमाता ने अपमे दो हाथों में कमल का फूल धारण किया है. उनके एक हाथ में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय जी हैं जिसे उन्होंने अपनी गोद में बैठाया हुआ है और एक हाथ से देवी स्कंदमाता आशीर्वाद दे रही हैं. नवरात्रि में देवी स्कंदमाता की पूजा के बाद उनकी आरती पढ़नी चाहिए. आइए जानते हैं स्कंदमाता की आरती...

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