माँ कल्याणी भगवती (ललिता)-पीठराज प्रयाग का प्राचीनतम शक्ति और सिद्धिपीठ / History

या श्री: स्वयं सुकृतियाँ भवनेष्व लक्ष्मी:|| यापात्मनां कृतधिया हृदययेषु बुद्धि:
श्रद्धा सतां कुल जन प्रभवस्य लज्जा || तां त्वां नता स्म परिपालय देविविश्वम:


जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मी रूप में, पापियों के घरों मे दरिद्रता के रूप में, शुद्ध अन्त:करण वालों के हृदय में बुद्धि रूप में तथा कुलीनों में लज्जा रूप में निवास करती है। उन भगवती कल्याणी को हम नमन करते हैं।

हे देवी समस्त विश्व का परिपालन कीजिए।

विशिष्ट भारत की गौरवमयी आध्यात्मिक परम्परा में ‘शक्ति उपासना’ का अपना स्थान रहा है। यहाँ अनगिनत ऋषि, मुनि, साधु, सन्त, गृहस्थ और सन्यासी से लेकर अवतार के रूप में अवतरित होने वाली महान दैवी विभूतियों तक ने शक्ति पासना का श्रेष्ठ आदर्श प्रस्तुत कर शक्ति उपासना की महती महत्त की परिपुष्टि की है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम की शक्ति पूजा, महाभारत में गीता का अमृत उपदेश देने वाली लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण को शक्ति-साधना करके अनुपम उदाहरण हैं। इसी प्रकार मध्य युग में गुरु गोबिन्द सिंह छात्रपति शिवाजी तथा संकल्प शिरोमणि राणा प्रताप की शक्ति साधना और भारतीय नवजागरण काल के महान तपस्वी परमहंस रामकृष्ण स्वामी विवेकानन्द की शक्ति पासना भी उसी परम्परा की कड़ी है।

शक्ति उपासना की इसी महत्त के कारण उत्तर से दक्षिण तक सारे भारत में शक्ति के असंख्य उपासना और अर्चना स्थल स्थापित हैं। इन उपासना स्थलों में शक्ति के ५१ (इक्यावन) महापीठों का अपना विशेष महत्व है। पौराणिक कथानक के अनुसार दक्ष यज्ञ में भगवान शिव की निन्दा सुनकर जब सती ने अपना प्राण त्याग दिया तब उनके मृत शरीर को लेकर देवाधिदेव व्रुâद्ध हो तांडव नृत्य करने लगे। ऐसी स्थिति में भगवान शिव को शान्त करने की दृष्टि से श्री नारायण ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काअ दिया। सती के कटे हुए अंश इक्यावन स्थानों पर गिरे। ये इक्यावन स्थान शक्ति के इक्यावन महापीठों के रूप में प्रतिष्ठित हुए। तीर्थराज प्रयाग में सती के शरीर का एक प्रमुख अंश (हाथ की उंगलियाँ) गिरी थी। अत: यह स्थान भी इन इक्यावन महापीठों में से एक है। यही कारण है कि प्रयागराज को तीर्थराज के साथ ही पीठराज भी कहा जाता है।


प्रयाग में भगवती ललिता कल्याणी देवी के रूप में विश्रुत हुर्इं। पद्म पुराण के अन्तर्गत प्रयाग महात्म की निम्नांकित पंक्तियाँ इस तथ्य की प्रमाण हैं-

तस्योतरे अस्ति ललिता कल्याणिति च गीयते,
दर्शनस्तस्य पूजाभि: सर्वेषां एर्व कामदा
(प्रयाग माहात्म्य, ७६ अध्याय, श्लोक १७)

इस प्रकार प्रयाग माहात्म्य के अनुसार ललिता और कल्याणी एक ही है। ललिता कल्याणी देवी के रूप में प्रतिश्ठिापित हुई हैं। कल्याणी देवी के वर्तमान स्थल के महापीठ होने के पक्ष में कुश्र अन्य साक्ष्य भी हैं। संक्षेप में इन्हें निम्नलिखित रूप में रख सकते हैं। पुराणों के अनुसार प्रयग में भगवती ललिता का पवित्र प्रांगण अक्षयवट से वायव्य कोण में अर्थात् उत्तर पश्चिम के कोने में यमुना तट के पास बताया गया है। कल्याणी देवी का ही स्थान ही भगवती ललिता देवी के साथ भव-भैरव विराजमान हें। ऐसा उल्लेख मिलता हे। माँ कल्याणी के मन्दिर के बिल्कुल समीप ही भवनाय भैरव का प्राचीन मंदिर है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के तीसरे खण्ड में वर्णन आया है। इस वृतान्त के अनुसार महर्षि याज्ञवल्क्य ने प्रयाग में भगवती की अराधना कर ३२ अंगुल की माँ कल्याणी की प्रतिमा स्थापित की।

निश्चय ही महर्षि याज्ञवल्क्य ने आराधना के लिए साधारण स्थान को चुना नहीं होगा। उन्होंने उसी स्थान को चुना होगा, जो सती के जीवन से सम्बन्धित रहा होगा। मत्स्य पुराण के तेरहवें अध्याय में १०८ पीठों का वर्णन है जिसमें कल्याणीललिता का नाम सर्वप्रथम आया हुआ है। महर्षि भरद्वाज की यही अधिष्ठात्री हैं।

पुरातात्विक साक्ष्य भी माता कल्याणी देवी के वर्तमान देवालय को शक्ति पीठ होने की पुष्टि करते हैं। उदाहरण के लिए पुराविद डॉ॰ सतीश चन्द्र कला (जो कि उत्तर प्रदेश के पुरातत्व विभाग के निदेशक तथा प्रयाग संग्रहालय के क्यूरेटर रह चुके हैं।) ने माता कल्याणी देवी की प्रतिमा का पुरातात्विक अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला था कि वर्तमान प्रतिमा पन्द्रह सौ वर्ष पुरानी है, प्रयाग में इससे अधिक प्राचीन माँ भगवती का अन्य कोई स्थान नहीं है।

वस्तुत: शास्त्र-पुराण एवं इतिहास के सभी साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि माता कल्याणी का वर्तमान स्थल ही एक ऐसा पुनीत प्राचीन और जाग्रत स्थल है, जिसे पीठराज प्रयाग के एक शक्तिपीठ होने का गौरव प्राप्त है।

References of Siddhipeeth Kalyani Mandir / सिद्धिपीठ कल्याणी मंदिर के संदर्भ

A significant Siddhapeeth, the temple lies in Kalyani Devi locality, the idol in this temple according to the Archaeological Survey of India is at least 15,00 years old. Visit it during Chaitra Navaratri (March - April) and Aswin Navaratri (September - October) and marvel at the special shringar (ornamentation) of the goddess during this time. Don’t miss the fairs that are organized during these festivals. The morning and evening aarti are attended by hordes of devotees.

  1. स्वामी आनंद गिरि द्वारा लिखितस्वर्ण भूमि प्रयाग - पृष्ठ संख्या 57
  2. डॉ कृष्णनंद पांडे द्वारा लिखित प्रयाग : कुंभ महापर्व - पृष्ठ संख्या 84
  3. Page 11, Uttar Pradesh Tourism Booklet - Allahabad the City of Faith
  4. डॉ सुरेंद्र कुमार पांडे द्वारा लिखित उत्तर खोजते प्रश्न - पृष्ठ संख्या 62
  5. शिवकुमार दुबे द्वारा लिखित तीर्थो का तीर्थ प्रयाग - पृष्ठ संख्या 82
  6. Page 19, Uttar Pradesh Tourism Booklet - UTTAR PRADESH A to Z
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