पाठक जी ने १९७४-७५ में जिला-चैम्पियन व १९७९ में इलाहाबाद के कम्पनी बाग स्टेडियम में राज्य-स्तरीय कुश्ती-दंगल का आयोजन कराया। १९७७ में चित्रवूâट के राजापुर में राज्य-स्तरीय कुश्ती दंगल का आयोजन कराया।
- १९७९ को मऊ में जिला स्तरीय कुश्ती दंगल का आयोजन कराया।
- १९९५ से लेकर २००१ तक प्रत्येक वर्ष कल्याणी देवी पार्वâ में अखिल भारतीय कुश्ती दंगल का आयोजन माँ कल्याणी विकास समिति विकास के तत्वाधान में कराया।
आपने सन् १९७८ से लेकर २००१ ई॰ तक प्रत्येक चैत्र नवरात्रि में मानस मर्मज्ञों द्वारा रामकथा, देवी कथा का आयोजन कल्याणी देवी पार्वâ में भक्तों के सौजन्य से सफल आयोजन कराया।
१९८४ से लेकर १९९२ तक वैâनवास बाल क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन बहुचर्चित पाठक कप के नाम से कल्याणी देवी पार्वâ में कराया।
१९९१ से १९९६ तक एवं २००० में राज्य स्तरीय शतरंज प्रतियोगिता का आयोजन कल्याणी देवी पार्वâ में कराया जहाँ प्रदेश के कोने-कोने से आये खिलाड़ियों के हफ्ते-भर ठहरने की व्यवस्था भी की जाती थी उन्हीं की प्रेरणा व संरक्षण में उनके कनिष्ठ पुत्र प्रदीप पाठक ने उत्तर प्रदेश सेलेक्शन व खुली प्रतियोगिता सहित ७ बार उत्तर प्रदेश चैम्पियनशिप जीती तथा एक बाद नैनीताल में ऑल-इण्डिया ओपन टूर्नामेन्ट जीता।
पाठक जी द्वारा किये गये कार्य एवं उनके उच्च विचार एक इतिहास की तरह बनकर रह गया जो हमेशा-हमेशा स्मरणीय रहेगा। जैसे-निर्धन कन्याओं का विवाह कराना, गरीब छात्र-छात्राओं व खिलाड़ियों को आर्थिक रूप से हर सम्भव मदद करना उनकी प्राथमिकता होती थी।
नव युवकों के लिए उनके मन में काफी स्नेह व प्यार भरा था। वो सदैव नवयुवकों को ब्रह्मचर्य तथा स्वास्थ्य के प्रति जागरुक कराने का प्रयत्न किया करते थे कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है।
पाठक जी सदैव अपने पूरे परिवार के प्रति समर्पित रहा करते थे। वो परिवार को संगठित रखने पर विशेष बल दिया करते थे। वो परिवार का सुख परिवार की एकता से ही सम्भव है। एक की शक्ति एक बहुत बड़ी ताकत होती है।
पाठक जी राजनीति में भी विशेष रुचि रखते थे। बिना भेद-भाव के राजनीति दलों के स्वच्छ छव िवाले जन-प्रतिनिधित्यों का हमेशा समर्थन किया करते थे।
पं॰ राज जी पाठक एक सरल स्वभाव तथा मृदुभाषी व्यक्ति थे। समाज से उनका अपना लगाव था। गृहस्थ आश्रम में रहते हुए वह हमेशा सामाजिक कार्य से जुड़े रहे। उन्होंने हमेशा समाज को जोड़ने का कार्य किया। अपने से बड़ों का सामान व छोटी से स्नेह व प्यार करना अपने पिता से संस्कार में प्राप्त किया। दूसरों की मदद करना ही अपना अधिकार तथा परम कर्तव्य समझते थे। वह हमेशा तमाम खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया करते थे। उनका कहना थ कि एकता का प्रतीक खेल होता है, वे खेल के माध्यम से समाज की बुराइयों को खत्म करने का अथक प्रयास किया करते थे। खेल ही नहीं वह सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी रुचि लिया करते थे। अपने जीवन काल में कई बाद रेडियो व दूरदर्शन कलाकारों द्वारा कार्यक्रम का आयोजन कराकर समाज को बांधने का कार्य करते थे।