ग्रहण काल में स्नान, दान, जप, पाठ, मन्त्र जाप, मन्त्र सिद्धि, ध्यान, हवन इत्यादि करना अति कल्याणीकारी होता है। धार्मिक लोगों को अपनी राशि के अनुसार अपने अपने ज्योतिषपरामर्श दाताओं से परामर्श लेकर दान योग्य वस्तुएँ संग्रह करके ब्राह्मण के निमित संकल्प कर देना चाहिए।
वृद्ध, रोगी, बालक तथा गर्भवती स्त्रियों को यथानुसार भोजन या दवाई लेने में कोई दोष नहीं है। ग्रहण के सूतक और ग्रहण के काल में खाना-पीना, मैथून, सोना, तेल मालिश निषेध है। मूर्ति स्पर्श करना, पका हुआ अन्न, कटी हुई सब्जी व फल ग्रहण काल में दूषित हो जाते हैं। उन्हें खाना नहीं चाहिए। लेकिन तेल या घी में पकी (तला हुआ) अन्न, घी, तेल, दही, लस्सी, मक्खन, पनीर, अचार, चटनी, मुरब्बे में कुशा तुलसी या तिल रख देने से ग्रहण काल में ये दूषित नहीं होते। सुखे खाद्य पदार्थों जैसे- गेहूँ, चना, दालें, आटा इत्यादि में तिल या कुश डालने की जरूरत नहीं है।
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों को पितृ-पक्ष कहा जाता है। श्राद्ध के द्वारा पितृ-ऋण से निवृत्ति प्राप्त होती है। अत: पितृ-पक्ष के सोलह दिनों में श्रद्धा-भक्ति पूर्वक तर्पण (पितरों को जल देना) करना चाहिए। मृत तिथि को (मृत्यु किसी भी मास या पक्ष में हुई हो) जल, तिल, चावल, जव और कुश से पिण्ड बनाकर या केवल सांकल्पिक विधि से श्राद्ध करना, गोग्रास निकालना तथा उनके निमित ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितर प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रसन्नता ही पितृ ऋण से मुक्त करा देती है। इसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं। जिनकी मृत्यु की तिथि का ज्ञान न हो उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए। मृतक का अग्नि संस्कार करने वाले दिन श्राद्ध नहीं किया जाता। मृत्यु होने वाले दिन श्राद्ध करना चाहिए।
- 1. श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है।................(-स्कन्दपुराण)
- 2.श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मण को निमन्त्रित करना आवश्यक है। जो बिना ब्राह्मण के श्राद्ध करता है उनके घर पित्तर भोजन नहीं करते तथा शाप देकर लौट जाते हैं।..........(-पद्मपुराण)
मंदिर एक ऐसा स्थान है जहाँ सामान्यत: सभी लोग अपनी-अपनी मनोकामनाओं को पूरा कराने के उद्देश्य से जाते हैं। भगवान की शक्ति के लिए मंदिर से अच्छा दूसरा कोई स्थान नहीं है। मन्दिर का वातावरण भी मन को लुभाने वाला होता है, मन को शांति मिलती है। इन्हीं बातों की वजह से सभी मंदिर जाने की इच्छा रखते हैं, लेकिन कुछ लोग समय अभाव या अन्य किसी कारण से मन्दिर नहीं जा पाते। ऐसे में वास्तु के अनुसार घर में ही मंदिर बनवायें। यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन भगवान के दर्शन करने नहीं जा पाता हैं तो ऐसे में जहाँ किसी मंदिर का शिखर दिखाई दे वहाँ से ही शिखर को नमस्कार कर लेना चाहिए।
मंदिर का शिखर का भी उतना ही महत्व है जितना भगवान की प्रतिमा या मूर्ति का होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि शिखर दर्शनम् पाप नाशम् अर्थात शिखर के दर्शन करने से भी हमारे सभी पापों का नाश हो जाता है।
जो बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं परन्तु साक्षात्कार के समय अपना सन्तुलन खो बैठते हैं, उनके लिए कुछ टिप्स-
- साक्षात्कार के दिन अपने माथे, नाभी तथा जुबान पर केसर का घोल लगाएँ।
- ताँबे के लोटे में रुद्राक्ष पानी में डालकर रात को सिरहाने रखें, प्रात: उस जल को पी लें। यह सिर्पâ ७ दिन तक करना है।
- काले और नीले कपड़े न पहनें।
- दही में चीनी खाकर घर से निकलें।
आजकल बच्चों की पढ़ाई पहले जितनी सस्ती नहीं रही और उसके साथ ही युग के प्रभाव से लगभग सभी परिवार में इन बारे में बहुत चिंता चल रही है। इसके निवारण के लिए-
- माता-पिता को चाहिए कि पूर्णिमा, अमावस्या तथा सोमवार को दूध और चावल मन्दिर में रखें। इससे विद्यार्थी को उसके परिश्रम का पूर्ण फल प्राप्त होगा।
- पढ़ाई करते समय और परीक्षा में बैठते समय किसी से कलम () माँग कर काम न चलावें। अपना ही खरीदा हुआ पैन प्रयोग करें। जिसका और हो ऐसा पैन ज्यादा उत्तम है।
- बच्चा पढ़ते समय () उत्तर या पूर्व के कमरे में उत्तर या पूर्व को मुख करके बैठे तो पढ़ाई में लगातार मन लगेगा।
- माता-पिता को चाहिए की बच्चों को सप्ताह में एक बार अवश्य किसी धर्म स्थान पर लेकर जाएँ जिससे बच्चों का मन शु॰ हो और चित्त पढ़ाई में लगें।
आजकल बच्चों की पढ़ाई पहले जितनी सस्ती नहीं रही और उसके साथ ही युग के प्रभाव से लगभग सभी परिवार में इन बारे में बहुत चिंता चल रही है। इसके निवारण के लिए-
- मंगल दोष निवारण हेतु मंगल गायत्री मंत्र की मंगलवार से शुरु करके कम से कम प्रतिदिन १ माला का जाप ४३ दिन लगातार करने के पश्चात अन्तिम दिन को गुड़ की रेवड़ियाँ एवं गुड़ का हलवा, नारियल एवं लाल वस्त्र धर्म स्थान में चढ़ाना शुभ होगा।
- श्रावण मास में विशेष रूप से श्री मंगला गौरी के व्रत करना। श्री मंगल स्रोत का पाठ नियमित रूप से करना शुभ होगा। इस स्रोत का नियमित एवं विधि पूर्वक पाठ करने से मंगलीक एवं मंगल जनित दोषों की शान्ति होती है तथा विवाह सुख की बाधाएँ दूर हो जाती है।
- जातक/जातिका को श्री सुंदरकांड का पाठ सिसी शुभ समय से शुरु करके १०८ बार पाठ करना चाहिए। बाद में भी मंगलवार, वीरवार, और शनिवार को यथासमय करते रहना चाहिए। प्रत्येक मंगलवार को १ नारियल (पानी वाला), मौली लपेटकर सिंदूर लगाकर, गुड़ सहित धर्म स्थान पर दान करना। कन्याओं में मीठा प्रसाद बाँटना शुभ होगा।
- मंगलवार के दिन मीठी चपातियाँ (अथवा सादी चपातियाँ, हलवा आदि सहित) गरीबों में बाँटना शुभ होगा।
- वर्ष भर मंगलवार को वट वृक्ष की जड़ पर मीठा दूध चढ़ाना तथा दूध से भीगी मिट्टी से वृक्ष को तिलक करके माथे पर भी लगा लेना चाहिए।
कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी एवं अमावस्या शुक्ल पक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी तथा त्रयोदशी में शिववास शुभ है।
तिथि संख्या के योग में दिन संख्या जोड़कर एक और जोड़ दे तथा चार भाग करें। यदि शेष शून्य या तीन बचे तो अग्निका वास पृथ्वी में होता है इससे हवन करने से कर्म की सिद्धि होती है, किन्तु एक
या दो शेष बचे तो अग्नि स्थापना नही करना चाहिए। यहाँ पर तिथि संख्या का विचार शुक्ल पक्ष प्रतिपदा (एक) से गणना करके क्रमश: कृष्ण पक्ष को प्रतिपदा को १६ इस क्रम से अमावस्या को ३०
संख्या मान कर तथा रविवार से १ की दिन संख्या मानकर गणना करना चाहिए।
वर्ष से २५ जनवरी २०१७ ई॰ को रात १२.१७ से शनि धनु राशि में आ गए है अत: वृश्चिक, धनु एवं मकर राशि वालों को शनि की साढ़े साती तथा वृष व कन्या राशि वालों को शनि की ढैया का प्रभाव
रहेगा। शनि प्रभावित राशि वालों को प्रत्येक शनिवार पीपल के वृक्ष में प्रात: जलदान तथा सांच दीपदान एवं सुन्दरकाण्ड तथा हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। किसी योग्य ज्योतिषी द्वारा शनि
शान्ति का उपाय जानना चाहिए तथा शनि मंत्र जप से शनि के हवन से दान से शनि कृत अरिष्ट फल का शमन होता है।
रविवार सांय ४.३० से ६.०० बजे तक
सोमवार प्रात: ७.३० से ९.०० बजे तक
मंगलवार दिन ३.०० से ४.३० बजे तक
बुधवार दिन १२.०० से १.३० बजे तक
गुरुवार दिन १.३० से ३.०० बजे तक
शुक्रवार दिन १०.३० से १२.०० बजे तक
शनिवार दिन ९.०० से १०.३० बजे तक