वैसे तो हजारों भक्त प्रतिदिन माँ कल्याणी के पूजन, दर्शन एवं सांस्कृति आयोजन हेतु आते रहते हैं परन्तु माँ कल्याणी के पावन परिसर में होने वाले मेलों का प्रयाग जनपद में अपना आकर्षक है। इन मेलों में चैत्रवदी अष्टमी का मेला जो सप्तमी से प्रारम्भ होकर नवमी तक चलता है। इस त्रिदिवसीय मेला का प्रथम आयोजन १८३५ में मन्दिर की तत्कालीन अर्चक पं॰ दुर्गाप्रसाद मिश्र (पं॰ केदारनाथ के परनाना) तथा उनके मित्र पं॰ कमलाकान्त शुक्ल द्वारा किया गया था। तब से लेकर अब तक यह मेला निन्तर चलता आ रहा है। इस अवसर पर जनपद के लाखों नर-नारी, बाल, वृद्ध भगवती के दर्शनार्थ आते हैं। नगर व ग्रामीण अंचल के अनेक भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण होने के उपलब्ध मेंं भगवती को ध्वजा पताका चढ़ाने के लिए बाजे-गाजे के साथ आते हैं। सायंकाल भगवती की अत्यन्त मनोहारी झॉकी सजायी जाती है। उनका दर्शन कर भक्त आत्मविभोर हो उठते हैं। मन्दिर के आस-पास सम्पूर्ण रात्रि धार्मिक एवं सांस्कृतिक अनेक कार्यक्रम होते हैं।
इसके अतिरिक्त चैत्र नवरात्र एवं सांस्कृतिक अनेक कार्यक्रम होते हैं। इसके अतिरिक्त चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र में भी भव्य विशाल मेला होता है। इस अवसर पर मन्दिर प्रांगण में शतचण्डी महायज्ञ, माँ की भव्य झॉकी, शृंगार का आयोजन होता है। इन अवसरों पर भी लाखोंं नर-नारी प्रदेश के कोने-कोने से माँ की दर्शन एवं पूजन करने आते हैं और मनौती मानते हैं। माँ कल्याणी उनकी मन से की गयी कामना को पूरा करती हैं। माँ कल्याणी का वार्षिक शृंगार आश्विन शुक्ल चतुर्दशी (ढेढ़िया) को होता है और शरद पूर्णिमा तक रहता है। यह शृंगार जनपद ही नहीं वरन प्रदेश का अनूठा शृंगार हैं। इस अवसर पर भी अपार जनसमूह माँ के दर्शन को आते हैं और मुग्ध होकर लौटते हैं।
चैत्र से लेकर श्रावण मास तक की हर कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माँ के प्रांगण में मेला व शृंगार होता है तथा कृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी, महाशिवरात्रि एवं हनुमत जयन्ती को विशेष शृंगार एवं झॉकी का आयोजन होता है। यों प्रति सोमवार एवं शुक्रवार को माँ कल्याणी का विशेष शृंगार पूजन एवं मेला होता है।
वस्तुत: कल्याणी देवी का पवित्र धाम पीठराज प्रयाग एक दर्शनीय स्थल है। इस पवित्र स्थल की प्राचीनता, पवित्रता तथा कल्याणमयी कल्याणी की कल्याण परखता लाखों श्रद्धालु भक्तों को भगवती के दर्शन के लिए आकर्षित करती रही हैं। इन असंख्य अनाम दर्शनार्थियों में पं॰ जवाहर लाल नेहरू, श्री लाल बहादुर शास्त्री, महामना पं॰ मदन मोहन मालवीय, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, पं॰ कमलापति त्रिपाठी, श्री गोपाल स्वरूप पाठक, श्री हेमवती नन्दन बहुगुणा, श्री ज्ञानी जैल सिंह, श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, श्री वीर बहादुर सिंह, श्री गोपीनाथ दीक्षित, श्री नारायण दत्त तिवारी, राज्यपाल श्री एम॰ चेन्ना रेड्डी, डॉ॰ कर्णसिंंह, श्री मुरली मनोहर जोशी, पं॰ केशरीनाथ त्रिपाठी जी राज्यपाल पश्चिम बंगाल के नाम उल्लेखनीय है।
तीर्थराज और पीठराज प्रयाग के हम सभी नागरिकों के लिए यह गौरव की बात है कि अपने नगर में इनका प्राचीन, प्रमाणित प्रतिष्ठित, जीवन्त और जागृत शक्तिपीठ विद्यमान है। इस प्रकार यह शक्तिपीठ हमारी अध्यात्म मूलक संस्कृति के स्मृति प्रतीक हैं और शक्ति उपासना की महत्ता के सन्देशवाहक हैं।
हम सबका यह नैतिक कर्तव्य है कि इस प्रकार के पीठों से प्रेरणा लें और भारतीय आध्यात्मिकता की अखण्ड ज्योति को ज्योतिर्मग्न बनाये रखने में योग दें। हम यह न भूलें कि आध्यात्मिक शक्ति की समस्त शक्तियों का मूल स्रोत है।